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सपा ने स्नातक एमएलसी चुनाव में आशुतोष सिन्हा पर जताया भरोसा पाँच नामों की हुई घोषणा

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एस के श्रीवास्तव विकास

वाराणसी/-समाजवादी पार्टी ने प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर नया समीकरण गढ़ते हुए शिक्षक और स्नातक एमएलसी चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। गुरुवार को जारी इस सूची में कुल पाँच नाम शामिल हैं, जिनमें वाराणसी स्नातक क्षेत्र से पार्टी ने एक बार फिर अपने युवा और ऊर्जावान नेता आशुतोष सिन्हा पर भरोसा जताया है। यह फैसला न केवल संगठन के भीतर उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है, बल्कि सपा की उस नई रणनीति का भी संकेत है जिसमें युवा नेतृत्व को प्रमुख भूमिका देने पर बल दिया जा रहा है।आशुतोष सिन्हा का नाम पूर्वांचल की राजनीति में अब किसी परिचय का मोहताज नहीं। वाराणसी के हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय से छात्र राजनीति की पृष्ठभूमि रखने वाले आशुतोष पहली बार 2006 में समाजवादी छात्रसभा के पैनल से उपाध्यक्ष चुने गए थे।तभी से उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया और युवाओं तथा शिक्षित वर्ग के बीच समाजवादी विचारधारा का प्रभाव फैलाने में खुद को समर्पित कर दिया।उनका राजनीतिक सफर संघर्षों से भरा रहा,परंतु दृढ़ संकल्प और ईमानदारी ने उन्हें निरंतर आगे बढ़ाया।छात्रसभा के राष्ट्रीय सचिव के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने कई जन आंदोलनों का नेतृत्व किया।विशेष रूप से लोकसभा चुनाव 2014 से पहले दिल्ली से लखनऊ तक निकाली गई समाजवादी साइकिल यात्रा में उनकी सक्रिय भागीदारी ने उन्हें राज्य स्तर पर पहचान दिलाई।युवाओं से लेकर शिक्षकों तक,आशुतोष ने अपने संवाद और सहज स्वभाव से जनमानस में गहरी छाप छोड़ी है।7 सितंबर 2019 को समाजवादी पार्टी ने आशुतोष सिन्हा को विधान परिषद के टिकट से नवाज़ा।यह निर्णय पार्टी के लिए रणनीतिक और साहसिक कदम साबित हुआ।5 दिसंबर 2020 को हुए चुनाव में उन्होंने शानदार जीत दर्ज की और सपा की ओर से वाराणसी स्नातक क्षेत्र के सदस्य विधान परिषद बने।अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने न केवल छात्रों और शिक्षकों की समस्याओं को मुखरता से उठाया,बल्कि रोजगार,शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली जैसे मुद्दों पर भी सरकार को कठघरे में खड़ा किया।उनकी शैली में आक्रोश नहीं तर्क का वजन होता है।यही कारण है कि विपक्षी भी उनकी बात को गंभीरता से लेते हैं।विधान परिषद में उनके भाषणों और प्रश्नों से स्पष्ट झलकता है कि वे शिक्षकों और स्नातकों के वास्तविक सरोकारों को गहराई से समझते हैं।आशुतोष सिन्हा की राजनीति विचारों की राजनीति है, न कि पद की।वे कहते हैं “राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं,बल्कि समाज में समान अवसर और शिक्षा के अधिकार की लड़ाई है।” यही सोच उन्हें आम लोगों से जोड़ती है।वाराणसी जैसे परंपरागत और आध्यात्मिक शहर में जहां राजनीति अक्सर जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है,वहां आशुतोष ने शिक्षा,युवाओं और रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दों को केंद्र में लाने का प्रयास किया है।वाराणसी-मिर्जापुर शिक्षक खंड से लाल बिहारी यादव को प्रत्याशी बनाया गया है।लाल बिहारी लंबे समय से शिक्षकों के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। 2004 में उन्होंने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (वित्त विहीन गुट) का गठन किया था और 2020 में सपा के टिकट पर जीत हासिल की थी।गोरखपुर-फैजाबाद शिक्षक खंड से सपा ने कमलेश यादव को उम्मीदवार बनाया है,जो पिछले एक दशक से शिक्षक राजनीति में सक्रिय हैं और वित्तविहीन शिक्षक संघ के प्रदेश सचिव हैं।लखनऊ खंड से समाजवादी पार्टी ने दो बार की पूर्व एमएलसी कांति सिंह पर भरोसा जताया है,जबकि इलाहाबाद-झांसी स्नातक क्षेत्र से मौजूदा सदस्य डॉ मान सिंह यादव को फिर से मैदान में उतारा गया है,जिन्होंने 2020 में भाजपा के कब्जे वाली सीट पर सपा का परचम लहराया था।विधान परिषद में शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की आठ-आठ सीटें होती हैं।इस बार 2025-2026 के द्विवार्षिक चुनाव में स्नातक क्षेत्र की पाँच और शिक्षक क्षेत्र की छह सीटों पर चुनाव होना है।इनमें लखनऊ, वाराणसी,आगरा,मेरठ और इलाहाबाद-झांसी जैसे प्रमुख खंड शामिल हैं।समाजवादी पार्टी की रणनीति साफ है, वह शिक्षित वर्ग,शिक्षक समुदाय और युवा स्नातकों को अपने पक्ष में एकजुट करने की कोशिश में है।इन चुनावों को सपा केवल विधान परिषद की सीटों की लड़ाई नहीं मान रही,बल्कि इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले जनता के मूड को समझने का एक सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है।वाराणसी के लिए आशुतोष सिन्हा का दोबारा मैदान में उतरना सपा के आत्मविश्वास का प्रतीक है।पिछले कार्यकाल में उन्होंने जिस निष्ठा और ईमानदारी से जनता का भरोसा जीता,उसने उन्हें केवल एक नेता नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग के “आवाज़” के रूप में स्थापित किया।अब जब समाजवादी पार्टी फिर एक बार परिवर्तन की राह पर है,तो आशुतोष सिन्हा जैसे चेहरे उसका नेतृत्व बखूबी कर सकते हैं।जहां संघर्ष है,वहां संवेदना भी है,जहां विरोध है,वहां विश्वास भी।वाराणसी की गलियों में अब एक ही चर्चा है, कि “सपा ने फिर दिया युवाओं पर भरोसा,अब देखना यह है कि क्या वाराणसी एक बार फिर समाजवादी सूर्योदय का साक्षी बनेगा।

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